Sunday, July 4, 2010

वो बोल नहीं पाता


‘आज मैं बोलूँगा ’, सोचा उसने

पर,

जब राह चलते एक अदने से सिपाही ने ,

उसे गाली दी ,

जब रेलवे के टिकेट क्लर्क ने ,

घंटो लाइन में रहने के बाद ,

छुट्टे पैसों के लिए उसे ,

बिना टिकेट लौटा दिया ,

जब उसकी प्रेमिका ने उसे ,

अपने किसी ‘गहरे ’ दोस्त से मिलवाया ,

हमेशा की तरह ,

वो आज भी कुछ ,

बोल नहीं पाया ….
*************.



एक इ-मेल


पिछले दिनों तुम्हे एक मेल किया था,

आज फिर कर रहा हूँ,

पिछले मेल का जवाब नहीं आया,

रोज एक आस के साथ,

मेल देखता था,

की तुम्हारा जवाब होगा,

'इन्बोक्स' खुलते ही उम्मीद ढेह जाती थी,

एहसास वही होता जैसे प्रेम के

तूफान के शांत होने पर होता है,

पर शायद इस 'लॉग इन' से,

'इन्बोक्स' के खुलने के सफ़र में,

इस प्रेम के चरम तक पहुचने के पहले के, 'फॉर प्ले' में,

मजा आने लगा है,

इन दस दिनों में जवाब की उम्मीद जा रही थी,

इसलिए आज फिर कर रहा हूँ,

तुम्हारा जवाब नहीं जवाब की,

आश को पाने के लिए.................




This is the first writ-up Amarjeet has bestowed to "We" and with warm welcome I expect, he would continue his contribution to improve this blog.

6 comments:

  1. लागइन से इनबाक्स तक का सफर वाला टुकड़ा कमाल है। अमरजीत लिखना जारी रखें

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  2. gud composition........ keep writing Amarjeet

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  3. 'वो बोल नहीं पाता' अच्छी कविता है. अमरजीत को बधाई! और लिखिए.

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  4. apki dono kritiyan adbhut hai sir....really very touching...waiting for some more to come from you...

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  5. achchi kawita Amarjeet. especially the second one


    Aparna Jha

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  6. apane kavi haradya ko khul kar bolne do.

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