यह महज संयोग नही होगा कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवम संचार विश्वविद्यालय के स्वंत्रतता दिवस समारोह मे बोलते हुए कुलपति के भाषण से छात्र सिरे से गायब रहे. वे भर भाषण नही मालूम विश्वविद्यालय के किस अबुझ प्रगति की चर्चा करते रहे, जिसमे सम्विदा पर काम कर रहे अध्यापको की नियुक्ति और सामूहिकता सब मौजूद थे, पर बतौर छात्र हम कहीं नही थे.
मानो, विश्व्विद्यालय छात्रों को पढाने के वास्ते या समाज को पत्रकारों की नई पौध देने के वास्ते नही, बल्कि, कुछ लोगो की नौकरी का जुगाड हो जाये, इसके लिये स्थापित किया गया हो.
भाषण खत्म होने पर जब मैने उनसे यह बात कही तो गोलमोल जवाब दे गये. क्या कहा, उनके ही शब्दो मे, “ चूंकि आज छात्र मौजूद नही थे सो उनकी बात नही हो सकी, सत्रारम्भ मे छात्रों की बात की जायेगी.”
अब सवाल यह है कि क्या ऐसा भी कोई शैक्षणिक संस्थान हो सकता है, जहा बिना छात्रो के भी स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण समारोह आयोजित किये जाते हो. हमारे माननीय कुलपति और विश्वविद्यालय के तमाम कर्ता-धर्ताओं को एक कमेटी बनाकर जांच करवानी चाहिये कि भारत के इतिहास मे अब तक, कितने स्कूल कालेज ऐसे है जहा बिना छात्रो के स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया गया हो. और फिर किन परिस्थितिओ मे!
यह विश्व्विद्यालय का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि सेमेस्टर सिस्टम होने के बावजूद भी दो महीने से भी लम्बी गर्मी की छुट्टी रखी गयी. और, स्वंतत्रता दिवस के ठीक एक दिन बाद (ठीक एक दिन बाद) से नये सत्र के शुरुआत की घोषणा की गयी. जोकि यह साबित करने के लिये काफी है कि इन तमाम खाये-अघाये लोगो के लिये यह दिन महज खानापुर्ति का दिन है, और कुछ नही. भले ही ये लोग, देश की स्वतंत्रता को लेकर, मंच से लम्बी-लम्बी बाते उछालें.
यह दु:खद है कि जो दिन हजारो-लाखो के शहादत को याद करने का दिन होता है, आजादी से अब तक तय की दूरी के समीक्ष का दिन होता है और साथ ही आगे आने वाले दिनो के वास्ते स्वप्न देखने का दिन होता है, वो हमारे विश्वविद्द्यालय के लिये छुट्टी का दिन होता है. वाह रे हमारे कर्ता-धर्ता, वाह!
ऐसे मे क्या इनसे यह उम्मीद की जा सकती है कि इनके पास वो शौक, वो विजन (और फुरसत भी) है कि एक सडते- गलते समाज को उसके जरुरत के मुताबिक पत्रकार दे सके. सोचने की जरुरत है!
विश्वविद्यालय है तो छात्रों की बात होनी ही चाहिए। नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। आपने ध्यान दिलाया। धन्यवाद। बात समाधान तक पहुँचे, हम साथ हैं।
ReplyDeleteHaan.. sochne ki jarurat hai or jarur hai...
ReplyDeletecharo taraf ek khamosh sajish ki ja rahi hai or woh bhi khamoshi ko prasarit karne ki...
Kulpati ka yah vaktavya bhi isi baat ko jahir karta hai ki woh bhi is Saajish ke Ahwahako me se hai jo sirf apni baat rakhna (jabardasti hi sahi) chahte hai. Naa top chatro ke liye unko fursat thi naa aaj hai...
Kundan Babu Ye silsila pichle kai dino se jaari hai - Placement ka nahi hona, Baccho me translation or News Writing ki pratibha ko dabana, Mataropit karna Ityadi...
Swatantrata ke sahi mayne shayad Vishwa Vidyalaya hi nahi samajh paya hai or agar koi Chatra/Chatra batana chahe to uske liye bhi woh Swatantra nahi hai....
Aise me kis swatantrata diwas me Baccho ke nahi aane ki baat kar rahe hai VC Mahodaya?
Naya Satra koi naya nahi har saal aata hai or usme bhi sirf gol matol baate karke Khana khila kar sirf Digbhramit kiya jata hai bade bade wade kiye jaate hai or pure satra chatra/chatrayei sirf Mugalte me jeete hai or Ant samay wahi hota hai jo VV karta aa raha hai..... BEROJGAR PATRAKAR......
Badahi or Sadhuwaad ki aapne is vedna ko samjha or ye baat vichar hi aage kuch naya Srijan karne me kamyab honge...
U pointed out a good issue and it must be analyzed...May be after ur sincerety towards this can help others to find out a way..... Jin logo ko yeh nahi dikhta hai unki aankh mai ungli daalkar dikhana zaruri hai....
ReplyDeleteU once again raised an issue that demands everyone's attention bhai Kundan. from last several months i've been seeing the university taking some decisions that has nothing to do with the welfare of the students studying here. seeing the things that are taking place in the university it does not seem that the university admin. is not at all worried about the bright career of its students. In last 5-6 months i've not seen even a single step that univ has taken with a motive of making its student competent and helping them have a bright future......really a big concern.
ReplyDeleteमित्रों, यह समझने की जरुरत है कि छात्रों का प्लेसमेंट नहीं हो रहा है, पर विश्वविद्यालय प्रगति कर रहा है. पहले तो अपने कुलपति महोदय को स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर उनका प्रगति का पैमाना क्या है. विद्यार्थी पढाई पूरी कर के घर बैठ रहे है और संसथान प्रगति कर रहा है! अपने विश्वविद्यालय ने आखिर ऐसा कौन सा कदम उठाया है (विद्यार्थियों के भले के लिए) जो इसे और संस्थाओं से अलग करता है.
ReplyDeleteशुक्रिया कि आपलोगों ने पोस्ट पसंद किया.
andolan chalu rakho bhai hum aap ke saath hai good evening sir
ReplyDeleteकुंदन जी अपने इस मुद्दे को छोड़ दिया की कुलपति द्वारा सात माह में किया गया कार्य और निर्णय कितने सार्थक और न्याययोचित थे| क्या प्राप्त नम्बर के आधार पर प्रवेश देना सही था? क्या पत्रकारिता को समर्पित बच्चे विश्वविद्यालय को मिल पाएंगे इसमे संदेह है? प्रवेश परीछा से बच्चे छन के तो आते थे! मेरा मानना है की पत्रकारिता को समर्पित वो बच्चे जिनका नंबर कम था वो विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने से वंचित रह गए, जो एक अच्छा और समर्पित पत्रकार हो सकतें थे !
ReplyDeleteI think launching was courses was a more important factor to him, bieng indifferent from the fact that students approach or not. Now the situation is that, neither the university got students admitted in the newly launched courses, nor the students having low percentages could get the admission here, despite having a spirit for journalism.
ReplyDeleteजितेन्द्र, अपर्णा धन्यवाद. क्या है कि एक कोई कमी होती तो इतना विरोध नहीं होता.. जैसा का आप लोग देख हे रहे है कि अब अपने माखनलाल में धरना-प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया है जो एकदम नया अनुभव है अपने किये. विश्वविद्यालय कि शांति को किसी कि नज़र लग गयी है.
ReplyDeleteशायद हमारे कुलपति जी को २६ जनवरी का इंतजार हो.........और क्या कहें. छात्रों की बात तो होनी ही चाहिए और ऐसा न होना उनकी प्राथमिकता में कौन है इसका इशारा करता, और कोई भी संस्थान तो छात्रों के नाम से से जाना जाता है इसलिए उनका जिक्र तक न होना सोचने वाली बात है..
ReplyDeleteबात में दम है।
ReplyDeleteभाई कुंदन आपको इतने साहसिक और जरुरी पोस्ट के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteआपने तो बी एच यू में भी देखा ही होगा की किसी भी छात्र से मिलकर आप अंदाजा नहीं लगा सकते की आखिर ये पढ़ क्या रहा होगा (अगर कुछ विभागों को छोड़ दिया जाये तो). हमारे विश्वविद्यालयों में प्रवेश की प्रक्रिया बहुत हद तक जिम्मेदार है सारी परेशानी के लिए तो इसे तो बदलना ही होगा अगर सार्थक परिवर्तन चाहिए तो.
दूसरी बात ये की जब सभी छात्र सही जगह पहुचे और उनके अंदर एक लगन और ललक हो अपने कोर्स के प्रति तब उनकी जिम्मेदारी बढे. उन्हें बागडोर का कुछ हिस्सा तो अपने हाथ लेना ही होगा वरना ये आजकल के कुलपति ऐसी जगह पहुचाना चाहते है जहा से मुख्य धारा में वापस न आ पाए हम और इनकी नैया इसी तरह चलती रहे.
मैं रक्त क्रांति की बात नहीं कर रहा लेकिन लोकतंत्र वापस आना चाहिए विद्यालयों के प्रांगण में. जब विद्यालय हमारी जरुरत के हिसाब से चलेगा और हम अपनी सफलता में शामिल कर के उसकी जरुरत पूरी करेंगे तब बदलेगी तस्वीर. 15 अगस्त का जुलुस हम निकालेंगे ...किसी और के भरोसे नहीं रहेंगे.
तुम्हारा ब्लॉग देखकर और सरे कमेंट्स पढ़ कर विश्वास होता है की ऐसा होगा जरुर. हम लायेंगे वो दिन.
Sach mein ye badi hi dukhad baat hai ki humare kulpati ko chhatron ki chinta se jyada vishwavidyala ki rajneeti mein interest hai..gaur karne ki baat hai ki aaj tak ke kisi be sambhodhan mein chhatron ki placement ka koi jikr nahi aaya hai..sirf isi mein nahi aaj tak jabse yaha aaye hain kavi aisi baat nahi huyi ki kya padhayein kaise placement cell ko accha banayein, kaise dusre sansthanon se accha karein..kaam toh dur baat v nahi karte...waise sarkar ke aane se pehle kurukshetra vishwavidyala ke bare mein v kuch suna tha ummid karenge ki wo sach na ho par sayad gatividhiyan kuch aur hi kahani bayan karti hain...
ReplyDeleteमित्रो धन्यवाद फिर से. शिक्षको, कर्मचारियों और अध्ययन केन्द्रों के बाद अब बारीहमारी है. अब हम पूछेंगे की इतना सब बवाल हुआ इसमें आपने सात महीनो के कार्यकाल में छात्रो के लिए क्या किया. अमरजीत ने जितने भी मुद्ददे उठाये है उसपे सघन बातचीत की जरुरत है.
ReplyDeleteKundan, I would like to add one more thing to it.
ReplyDeleteThese are the same teachers who were earlier in against student movement and activities in the campus.
They were unconcerned regarding our issues and when the VC started pruning them they began to shout against Him.
This should also be taken into consideration that they are also in the same lane which the VC is.
बिकाश भाई, हमारा व्यवहार किससे तय होता है! यह जानना मजेदार है. यूँ तो लोग मानते है की वो खुद अपने व्यवहार को संचालित करते है, पर वो दरअसल आप कुर्सी के किस साइड है, से संचालित होता है. एक बहुत प्यारी कहानी है, सृंजय की इसी विषय पर. मै कहानी का नाम भूल रहा हूँ.
ReplyDeletestudents ki baat yadi ho v jaati to kya hota? kuchh jhoothe aashwasan mil jaate,aur hum khyali pulaw pakate rahte, andhere me jite rahte.to thik hi to hai, kuchh naa kaha to.kam se kam sach ke ujale to hume kuchh raah dikhayenge..maan liya bhai, hamare vc kitna soch samajh ke bolte hain....
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