पुरुषों की चालाकी देखिये की भजनों में भी अपने हित साधते है. अभी दो-चार दिनो पहले की ही बात है.
सवेरे, अभी मेरी आँख नहीं खुली थी, अलबत्ता कान खुल गए थे और नाक तो मतलब खुली ही रहती है. दूर कही लाउड-स्पीकर पर बजता हुआ एक 'भजन' कानो में पड़ा.
भजन में मधुर महिला स्वर कह रहा था " श्याम तेरी मुरली पुकारे राधा नाम, लोग करें मीरा को यूँ ही बदनाम". जैसा कि प्रेम का यह पक्ष बहुत दु:खद होता है. मेरा अलसाया मन हल्का होने से पहले ही भारी हो गया. अभी अगली पंक्ति के शुरू होने के पहले की धुन बज रही थी. उतनी ही देर में मेरा बेचारा मन दुनिया के सारे कोनो का भ्रमण कर आया. कईयों से मिल आया और कईयों से बिछड आया.
मीरा से मेरी हमदर्दी हो गयी. मै दरअसल कुछ पल के लिए मीरा ही हो गया था. ख्याल आया कि कम से कम बदनाम तो न करो भाई. सोचा कि मारो लाइन जिसको मारना है पर ऐसे खुल्लम-खुल्ला मारो ताकि लोगों के दिमागी-उपद्रव को नंगा-नाच करने का मौका न मिले और भले तुम ना मिलो मुझे पर फिर तुम्हारी गलाजत भी नही मिलनी चाहिए.
बहुत कुछ सोच डाला. तब तक दूसरी पंक्ति पुरुष आवाज के साथ कानों तक पहुंची, आप भी सुनिए, " सांवरे की बंशी को बजने से काम, राधा का भी श्याम वो तो मीरा का भी श्याम".
सच बताऊँ तो मुझे इस ढिठाई पर गुस्सा आ गया. ये भी कोई बात हुई कि मै उसका भी और तुम्हारा भी. भाई-बन्धु तो हो नही भईया कि जितने चाहो उतने रख लो. दुनियादारी के इसी चिल्लचपट से तो जलकर इंसान एक मासूम कोने पर राज करने की चाह से इस बियाबान रास्ते की तरफ भागता है. यहाँ भी तुमने वही तीन-तिकडम शुरु कर दिया कि मै तो अपना काम करूँगा. तुमलोग अपना आपस में समझ लो.
ऐसा तब है, जब तुम जानते हो कि अब मुझ गरीब के पास सोचने को बचा ही क्या है. एक गज़ल की लाईन है न कि “ कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उसने, बात तो सच है मगर बात है रुसवाई की,” अपने खासम-खास प्यार का नगाडा पीटते वक्त यह कहाँ ध्यान रहा कि ये दो पहियों की गाडी है और तुम इतनी जल्दी पंक्चर हो जाओगे.
जिन रास्तो पर चलते हुए हम इतराते थे कि खुदा-ना-खास्ता हम बिछड़ भी गये तो ये मोहल्ले, ये गलियां और ना जाने क्या क्या एक दूसरे की याद दिलायेगे. मालूम, वहाँ से गुजरते हुए तुम्हारी याद से ज्यादा तो शरम आती है, जब लोगो कि 'रहम बरसाती आखें' कहती है कि क्यों बच्चू, हम कहते थे न कि इस मुरली की तीखी धुन मे एक साजिश है और ऐसी जगहो पर इतना बडा दाव नही खेलते है. तो मै उनपर झपट पड़ती थी कि, ओ प्यार के दुश्मनो, तुम मेरे कन्हैया को नही जानते हो. ये तो माखनचोर है, मेरे मन का सांवरा.
तो ऐसे मे अब लगाई हुई प्रेम की पूंजी को बचाने के चक्कर मे कुछ और समझौता करते हैं कि कोई बात नही मेरे कान्हा कि पंक्चर हो गये तुम. चलो किसी साईकिल की दुकान पर चलकर पंक्चर चिपकवाने की कोशिश करते है. उसी वक्त मे वो ‘प्रेम के कच्चे धागे’ और ‘गांठ पड जाने’ वाली बात जो बार-बार निकलने को बेचैन होती है, उसको जबरन कोंच के अन्दर ठूसना पडता है. झूठ बोलना पडता है कि एक फिर हम उसी रफ्तार से दौड सकेंगे जैसे तुम्हारे पंक्चर होने के पहले दोडते थे. पर ऐसा हो सकता है भला!
ऐसे मे तुम्हारा जवाब कि मै तो अपनी 'सो काल्ड' महान आदत से बाज नही आउंगा और दोनों को क्यों, कईयों को एक साथ लाइन मारूंगा. छूट इस बात की चाहिए कि मै तो ईश्वर हूँ, मेरी सारी गलती माफ़ है.
मजेदार तो ये है कि आजकल के नेता भी कुछ ऐसा ही सोचते है. और नेता ही क्यों सारे पुरुष अपने को स्त्रियों के देवता ही तो मानते रहे है. तब जाकर समझ में आया कि ओहो! आज की इस लहलहाती समस्या का बीज तो कन्हैया, तुम्हारी बांसुरी ने डाला था.